केसरी बाबू 1

केसरी बाबू

 वन महोत्सव का दिन था। नन्हीं- नन्हीं फुहारे रिमझिम बरस रही थी। आज का दिन कजरारे बादलों के साथ कितना सुंदर, कितना मोहक लग रहा था। मेरी आंखें कभी आकाश में उड़ने वाले काले बादलों पर जमती और कभी सहसा इंद्रधनुषी पुल पर। इसी समय रासिम लाल दौड़ता हुआ आया आज केसरी बाबू ने हमें ट्रस्ट के बगीचे में बुलाया है। वे हमें चंपा, चमेली, कनेर, गुलाब आदि के बहुत से पौधे देने वाले हैं। उनका लड़का आया है। जाऊं? आकाश से आंखें धरती पर आ गई और मैंने कहा जाओ जरूर जाओ। मैं सोचने लगा, ट्रस्ट के बगीचे के बाबू का नाम केसरी? अजीब है। मैं उसे देखना चाहूंगा। दूसरे ही क्षण मैंने रसिम लाल से कहा, और देखो, लोटते वक्त केसरी बाबू से कहना कि आप को पिताजी ने बुलाया है। भूलना मत।     


कुछ समय बाद देखता हूं कनेर, गुलाब, रातरानी, चमेली, चंपा और न जाने कौन कौन से पौधे लिए स्वयं केसरी बाबू बच्चों के आगे आगे सारस सी डगें धरते हुए चले आ रहे हैं। मैंने देखा,उनका कद न ऊंचा, न ठिगना, मजे के मझोले आदमी है। न मोटे हैं, न पतले। आंखें भी मझोली ही हैं, कपोलो में धंसी हुई पीली पीली सी। दांत विरल हैं। उनका कत्थई रंग पान और तंबाकू के अतिरेक की शहादत दे रहा है। धोती बाबू आला ढंग की पहने हुए हैं, पर मैल खाने से बादामी रंग की हो गई है। पैरों में कोंकणी चप्पले हैं, जो काफ़ी मोटी और मजबूत है। और हां, काले धारीदार कुरते के ऊपर बटन विहीन खाकी रंग का कोट भी पहने हुए हैं। दाहिने हाथ में एक छड़ी झुलाते हुए वे चले आ रहे हैं। केसरी बाबू के अहाते में आने के पहले ही रसिम लाल दौड़ता हुआ आया और कहने लगा, "यह देखिए, केसरी बाबू आ गए।"

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